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03 Oct, 2025
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शक्ति सिन्हा – एक यादगार व्यक्तित्व, पुण्य स्मृति को विनम्र नमन।

शक्ति सिन्हा – एक यादगार व्यक्तित्व

जन्म: 11 मई 1957 | स्मृति: 4 अक्टूबर 2021

शक्ति सिन्हा भारतीय प्रशासनिक सेवा (ias) के 1979 बैच के एक प्रतिभाशाली और कर्मठ अधिकारी थे। अपने प्रशासनिक कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए न केवल नीति-निर्माण में योगदान दिया, बल्कि भारत के राजनीतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विमर्श में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी।

वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अत्यंत करीबी सहयोगियों में रहे और वर्ष 1998 से 2000 तक वाजपेयी जी के निजी सचिव के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने नीतिगत निर्णयों और शासन के विभिन्न पहलुओं में सक्रिय भागीदारी निभाई।

मुख्य पद और योगदान

  • दिल्ली सरकार में ऊर्जा सचिव के रूप में कार्य

  • संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फेडरेशन के महानिदेशक

  • दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के निदेशक

  • वडोदरा की एम.एस. यूनिवर्सिटी में अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी रिसर्च एंड इंटरनेशनल स्टडीज के निदेशक

  • नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (nmml) के निदेशक

लेखन और बौद्धिक योगदान

शक्ति सिन्हा केवल प्रशासक ही नहीं, बल्कि एक चिंतक और लेखक भी थे। उनके लेखन में इतिहास, राजनीति और समाज की गहरी समझ झलकती है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं:

  • vajpayee: the years that changed india (2020)

  • patel: political ideas and policies (2019, सह-लेखक: प्रो. हिमांशु रॉय)

पारिवारिक पृष्ठभूमि

उनकी पत्नी सुरभि सिन्हा सेवानिवृत्त आईआरएस अधिकारी हैं। उनके परिवार में पुत्र कार्तिकेय सिन्हा और पुत्री सुहासिनी सिन्हा हैं। शक्ति सिन्हा के पिता शिवाजी सिन्हा देश के पहले बैच के आईपीएस अधिकारी रहे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका परिवार प्रशासनिक सेवा और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित रहा है।

निष्कर्ष

शक्ति सिन्हा का व्यक्तित्व प्रशासनिक दक्षता, बौद्धिक गहराई और राजनीतिक-सांस्कृतिक समझ का अद्भुत संगम था। उन्होंने अपने कार्यों और लेखन से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनकी स्मृति सदैव समाज और राष्ट्र की सेवा के आदर्श के रूप में जीवित रहेगी।

उनकी पुण्य स्मृति को विनम्र नमन।
#कायस्थ_विरासत

 

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21 Sep, 2025
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कायस्थ गौरव : आयुषी सिन्हा राष्ट्रीय एनएसएस पुरस्कार के लिए चयनित, कायस्थ समाज में हर्ष

भोपाल। कायस्थ समाज के लिए 29 सितम्बर का दिन ऐतिहासिक होने जा रहा है। इस दिन भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल की एनएसएस स्वयंसेविका सुश्री आयुषी सिन्हा को राष्ट्रीय एनएसएस पुरस्कार से सम्मानित करेंगी।

आयुषी को यह सम्मान वर्ष 2022-23 के लिए उनके उल्लेखनीय सामाजिक योगदान, अनुकरणीय सेवा भावना और राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के उद्देश्यों को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने हेतु प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने स्वच्छता अभियान, मतदाता जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण, प्लास्टिक मुक्त भारत, नशा मुक्ति, लैंगिक समानता, स्वास्थ्य शिविर, रक्तदान शिविर तथा कोविड-19 जागरूकता जैसे कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषयों पर कार्य किया है।

आयुषी की इस उपलब्धि पर अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष वेद आशीष श्रीवास्तव ने बधाई देते हुए कहा कि यह कायस्थ समाज के लिए अत्यंत गौरव का क्षण है। उन्होंने बताया कि महासभा की ओर से भी आयुषी का विशेष सम्मान किया जाएगा।

 

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10 Sep, 2025
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कायस्थ गौरव श्रेया सरन : नृत्य से अभिनय तक का अद्भुत सफर

श्रेया सरन भटनागर का जन्म 11 सितम्बर 1982 को उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के हरिद्वार में एक कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता पुष्पेंद्र सरन भटनागर भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड में कार्यरत थे, जबकि उनकी माता नीरजा सरन भटनागर रसायन विज्ञान की अध्यापिका रहीं, जिन्होंने दिल्ली पब्लिक स्कूल, रानीपुर, हरिद्वार और बाद में दिल्ली पब्लिक स्कूल, मथुरा रोड, नई दिल्ली में अध्यापन किया। श्रेया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इन्हीं विद्यालयों से पूरी की। उनका एक बड़ा भाई अभिरूप है, जो मुंबई में रहता है। उनकी मातृभाषा हिंदी है और बचपन का अधिकांश समय हरिद्वार की बीएचईएल कॉलोनी में बीता।

उच्च शिक्षा के लिए श्रेया दिल्ली आईं और लेडी श्रीराम कॉलेज से साहित्य में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बचपन से ही वे नृत्य में गहरी रुचि रखती थीं। उनकी माँ ने उन्हें कथक और राजस्थानी लोकनृत्य का प्रशिक्षण दिया और आगे चलकर प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना शोवना नारायण से उन्होंने कथक सीखा। कॉलेज जीवन के दौरान वे कई नृत्य टीमों से जुड़ी रहीं और सामाजिक मुद्दों को अपने नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त करती रहीं।

उनका फिल्मी सफर अचानक ही शुरू हुआ। लेडी श्रीराम कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनके नृत्य शिक्षक की सिफारिश पर उन्हें रेणु नाथन के म्यूजिक वीडियो "थिरकती क्यूं हवा" में अवसर मिला। इस वीडियो को रामोजी फिल्म्स ने देखा और उन्हें तेलुगु फिल्म इष्टम में मुख्य भूमिका के लिए चुना। यह उनकी पहली फिल्म थी और इसके रिलीज़ से पहले ही उन्हें चार और फिल्मों के प्रस्ताव मिल गए, जिनमें नुव्वे नुव्वे भी शामिल थी। 2002 में वे संतोषम फिल्म में दिखाई दीं, जिसने उन्हें पहचान दिलाई।

हिंदी सिनेमा में उनकी शुरुआत 2003 में तुझे मेरी कसम से हुई, जिसमें रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा मुख्य भूमिकाओं में थे। इसी वर्ष उन्होंने चिरंजीवी और ज्योतिका के साथ तेलुगु फिल्म टैगोर में अभिनय किया, जो बड़ी व्यावसायिक सफलता साबित हुई और अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी पुरस्कारों में प्रदर्शित भी की गई। तमिल सिनेमा में उन्होंने अपनी शुरुआत एनाक्कु 20 उनक्कु 18 से की, जिसे तेलुगु में नी मनसु नाकु तेलुसु नाम से एक साथ शूट किया गया। इस फिल्म में उन्होंने एक फुटबॉल कोच का किरदार निभाया।

इस प्रकार, श्रेया सरन ने अपने शुरुआती करियर में ही तीन भाषाओं – तेलुगु, तमिल और हिंदी – की फिल्मों में काम किया। हालांकि उनकी शुरुआती दस फिल्मों में से आठ तेलुगु में थीं, लेकिन उनके अभिनय की विविधता और प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा की बहुभाषी अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया।

श्रेया सरन भटनागर ने अपने करियर में कई भाषाओं की फिल्मों में काम करके भारतीय सिनेमा में विशेष स्थान बनाया। तेलुगु सिनेमा में उनकी गिनती सबसे सफल अभिनेत्रियों में होती है। शिवाजी: द बॉस (2007) उनकी सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक रही, जिसमें उन्होंने दक्षिण भारतीय सुपरस्टार रजनीकांत के साथ अभिनय किया। यह फिल्म उस समय भारतीय सिनेमा की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल हुई और श्रेया को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसके अलावा संतोषम, चत्रपति, मनम, गौतमीपुत्र शतकरणी और दृश्यम जैसी फिल्मों ने उनके करियर को नई ऊँचाइयाँ दीं। हिंदी सिनेमा में उन्होंने अजय देवगन के साथ दृश्यम (2015) में दमदार अभिनय किया, जो बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता साबित हुई और आलोचकों से भी सराहना पाई। इस फिल्म का सीक्वल दृश्यम 2 भी हिट रही।

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10 Sep, 2025
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करुणा और संवेदना की स्वर-वीणा: महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर नमन

कायस्थ गौरव – महादेवी वर्मा : जीवन परिचय

महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य की महान कवयित्री, लेखिका और शिक्षाविद थीं जिन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। वे छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उनका पूरा जीवन त्याग, साधना, करुणा और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुख़ाबाद में होली के दिन हुआ। उनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा वकालत करते थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी धर्मनिष्ठा तथा शिक्षा प्रेमी थीं। दो सौ वर्षों बाद परिवार में कन्या संतान का जन्म हुआ और माता-पिता ने उनका पालन-पोषण अत्यंत स्नेहपूर्वक किया।

महादेवी वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। बाद में उन्होंने इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट कॉलेज से शिक्षा प्रारंभ की। बी.ए. की पढ़ाई जबलपुर से पूरी करने के बाद उन्होंने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से ही उनकी काव्य प्रतिभा मुखर होने लगी थी। मात्र सात वर्ष की आयु में ही वे तुकबंदी करने लगी थीं और उनकी कविताएँ प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं।

उनका विवाह 1914 में नौ वर्ष की आयु में डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा के साथ हुआ, किन्तु सांसारिक जीवन में उनकी कोई विशेष रुचि नहीं थी। वे बौद्ध धर्म और भिक्षुणी जीवन से अत्यधिक प्रभावित थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और साहित्य साधना में लीन रहीं।

साहित्यिक क्षेत्र में महादेवी वर्मा का योगदान अतुलनीय है। वे छायावादी काव्यधारा की प्रमुख कवयित्री थीं। उनकी रचनाओं में करुणा, वेदना, रहस्यवाद और स्त्री जीवन की पीड़ा का अद्भुत चित्रण मिलता है। उन्हें साहित्य साम्राज्ञी, हिन्दी मंदिर की वीणापाणि और शारदा की प्रतिमा जैसे विशेषणों से अलंकृत किया गया। उनकी प्रमुख कृतियों में नीहार, रश्मि, नीरजा, सन्ध्यागीत और यामा काव्य संग्रह हैं। गद्य रचनाओं में श्रृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखाएँ और अतीत के चलचित्र विशेष रूप से चर्चित हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने चाँद पत्रिका का संपादन किया और प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की।

महादेवी वर्मा को एक काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला जिसे उन्होंने महात्मा गाँधी को भेंट कर दिया। वे कवि सम्मेलनों में भाग लेकर सत्याग्रह आंदोलन के दौरान अपनी कविताओं से जनमानस को जागृत करती थीं। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत किया गया।

महादेवी वर्मा की कविताओं में करुणा और वेदना का महास्रोत प्रवाहित होता है। उनका साहित्य नारी जीवन की असमानताओं, समाज की विसंगतियों और मानवीय संवेदनाओं का गहन चित्रण करता है। वे केवल एक कवयित्री ही नहीं बल्कि समाज सुधारक, शिक्षाविद और सांस्कृतिक प्रहरी भी थीं।

निस्संदेह महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य की अमर विभूति और सम्पूर्ण कायस्थ समाज का गौरव हैं। उनका जीवन त्याग, करुणा और साहित्य सेवा का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने हिन्दी कविता को नई दिशा दी और समाज की महिलाओं को शिक्षा तथा स्वाभिमान के लिए प्रेरित किया। उनके योगदान के कारण वे सदैव हिन्दी साहित्य की स्मृति में अमर रहेंगी।

लेखक – वेद आशीष श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा

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06 Sep, 2025
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पितृ पक्ष 2025 : पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध, तर्पण और भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा का महत्व

नई दिल्ली। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का अत्यंत विशेष महत्व है। यह वह कालखंड है जब मनुष्य अपने पूर्वजों का स्मरण कर श्रद्धा भाव से श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों की कृपा से ही जीवन में सुख-समृद्धि और संतति की उन्नति होती है।

पितृ पक्ष की शुरुआत और तिथियां
इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025, रविवार को भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ होगा। इस दिन पूर्णिमा श्राद्ध एवं चंद्र ग्रहण दोनों पड़ रहे हैं, किंतु ग्रहण का पितृ पक्ष के कर्मकांड पर कोई प्रभाव नहीं होगा। पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर 2025, रविवार को आश्विन कृष्ण अमावस्या, जिसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है, पर होगा।
इन 15 दिनों में प्रतिदिन अलग-अलग तिथियों पर श्राद्ध करने का विधान है।

शास्त्रों में श्राद्ध और तर्पण का महत्व
"श्राद्ध" शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका अर्थ है — पितरों के प्रति श्रद्धाभाव। शास्त्रों के अनुसार पितरों को जल, तिल और अन्न अर्पित करने की प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और कर्ता को पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
श्राद्ध कर्म प्रायः दोपहर के समय कुतुप और रोहिणी मुहूर्त में किया जाता है। इसके अंतर्गत स्नान, स्वच्छता, गंगाजल छिड़काव, ब्राह्मण भोजन, पंचबली (गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चींटी को अन्न अर्पण), और अंत में दान करने का विधान है।

भगवान श्री चित्रगुप्त जी की पूजा का महत्व
पितृ पक्ष में यदि कोई कारणवश तर्पण या पिंडदान न कर पाए तो भी भगवान श्री चित्रगुप्त जी की पूजा करने से पितरों को तृप्ति और शांति मिलती है।
चित्रगुप्त जी धर्मराज और कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले देवता हैं। वे हर मनुष्य के शुभ-अशुभ कर्मों के ज्ञाता एवं रचयिता हैं और हमारे चित्त में गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि — यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन भगवान चित्रगुप्त जी के मंदिर में जाकर प्रणाम करे और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करे, तो पितरों को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही मनुष्य को भी अनजाने पापों की क्षमा मिलती है।

चित्रगुप्त जी की पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

  • मंदिर जाकर भगवान चित्रगुप्त जी को अक्षत, पुष्प, दीप और प्रसाद अर्पित करें।

  • "जय चित्रगुप्त महाराज" का स्मरण करते हुए पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।

  • यदि संभव हो तो भगवान को लेखनी (कलम-दवात) अर्पित करें, यह विशेष फलदायी माना गया है।

  • दिनभर सात्विक आचरण और दान-पुण्य का पालन करें।


पितृ पक्ष केवल कर्मकांड भर नहीं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है। जो लोग विधिवत श्राद्ध नहीं कर पाते, उनके लिए भगवान श्री चित्रगुप्त जी की पूजा एक सरल और सुलभ मार्ग है, जिससे पितरों की आत्मा को मोक्ष और जीवित परिवारजनों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

लेखक – वेद आशीष श्रीवास्तव, राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा

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06 Sep, 2025
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नवरात्रि पर कायस्थ समाज के लिए विशेष सौगात – K-Card धारकों को मिलेंगे मुफ्त उपहार

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा इस नवरात्रि एक खास पहल लेकर आई है। समाज के सभी k-card धारकों के लिए शुरू किया गया है lucky draw उपहार योजना, जिसमें नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन 9-9 मुफ्त उपहार दिए जाएँगे।

समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि जिन सदस्यों ने अपना मोबाइल नंबर k-card से वेरीफाई करा लिया है, उन्हें उपहार का संदेश सीधे उनके मोबाइल पर प्राप्त होगा। यह योजना पूरे देशभर के k-card धारकों के लिए मान्य है।

महासभा का कहना है कि इसका उद्देश्य समाज को एकजुट करना और हर परिवार तक k-card की महत्ता को पहुँचाना है। अगर आपने अभी तक अपना k-card नहीं बनवाया है, तो यह सही समय है। पूरे परिवार का k-card बनवाइए और नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर मुफ्त उपहार पाने का अवसर लीजिए।

क्या आप होंगे इस उपहार के हकदार? किस्मत अब आपके हाथ में है l

 

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23 Aug, 2025
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वीरांगना बीना दास जी​​​​​​​ की जयंती पर शत्-शत् नमन

आज हम भारत की महान क्रांतिकारी और निर्भीक वीरांगना बीना दास जी को उनकी जयंती पर शत्-शत् नमन करते हैं।
24 अगस्त 1911 को बंगाल के कृष्णानगर कायस्थ परिवार में जन्मी बीना दास ने अपने जीवन के प्रारम्भ से ही समाजसेवा और राष्ट्रसेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। उनके पिता बेनी माधव दास एक प्रसिद्ध शिक्षक थे, जिनके छात्र नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे महापुरुष रहे। उनकी माता सरला दास ने ‘पुण्याश्रम’ संस्था स्थापित कर निराश्रित महिलाओं को सहारा दिया। इस पावन पारिवारिक वातावरण ने बीना दास के हृदय में राष्ट्रप्रेम और त्याग की ज्योति प्रज्वलित की।

बीना दास ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते समय साइमन कमीशन के बहिष्कार और विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया। 6 फरवरी 1932 को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्होंने गवर्नर स्टेनली जैक्सन पर गोली चलाकर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी। यद्यपि गवर्नर बच गया, परंतु बीना दास का यह साहसिक कदम भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमिट हो गया।

उन पर मुकदमा चला और उन्हें नौ वर्ष का कठोर कारावास मिला। अमानवीय यातनाओं के बावजूद उन्होंने अपने साथियों के नाम नहीं बताए। 1937 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद वे जेल से रिहा हुईं। स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात भी उन्होंने राजनीति, समाजसेवा और पुनर्वास कार्यों में सक्रिय रहकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया।

26 दिसम्बर 1986 को ऋषिकेश में उनका देहावसान हुआ, परंतु उनका साहस और देशप्रेम आज भी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है।


श्रद्धांजलि 

"भारत माँ की इस वीर पुत्री को उनकी जयंती पर अखिल भारतीय कायस्थ महासभा शत्-शत् नमन करती है। उनका अदम्य साहस, त्याग और राष्ट्रभक्ति हमें सदैव प्रेरित करते रहेंगे।"

✍️ लेखक : वेद आशीष श्रीवास्तव
राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा

 

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18 Aug, 2025
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अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने विधायक रश्मि वर्मा को महिला प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया

पटना, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनूप श्रीवास्तव (irs) ने पटना में आयोजित कार्य समिति की बैठक में एक महत्वपूर्ण घोषणा की। बैठक में 35 जिला अध्यक्षों, प्रदेश अध्यक्ष एवं प्रदेश कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में बिहार की वरिष्ठ भाजपा विधायक एवं नरकटियागंज की जनप्रिय नेता श्रीमती रश्मि वर्मा को अखिल भारतीय कायस्थ महासभा महिला प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

श्रीमती रश्मि वर्मा बिहार की एक सक्रिय एवं लोकप्रिय राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने 2014 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में उपचुनाव जीता, 2015 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी मजबूत उपस्थिति दर्ज की और 2020 में पुनः भाजपा से जीत हासिल करते हुए नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। राजनीति में आने से पूर्व वे नरकटियागंज नगर परिषद की मेयर भी रह चुकी हैं।

उनके नेतृत्व में महिला प्रकोष्ठ को और सशक्त बनाने की अपेक्षा व्यक्त की जा रही है। इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनूप श्रीवास्तव ने कहा कि “श्रीमती रश्मि वर्मा के नेतृत्व में महिला प्रकोष्ठ नई ऊर्जा के साथ संगठन को मजबूती देगा और समाज की महिला शक्ति को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”

नियुक्ति पर संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने शुभकामनाएँ दीं। युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष वेद आशीष श्रीवास्तव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (के. कार्ड) राजीव वर्मा, व्यावसायिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शंकर श्रीवास्तव, महिला महासचिव डॉ. आरती सुमन चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन सिन्हा तथा प्रदेश महामंत्री माया श्रीवास्तव ने रश्मि वर्मा को बधाई देते हुए उनके नेतृत्व पर विश्वास जताया।

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15 Aug, 2025
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देशभर में हर्ष और गर्व के साथ मनाया गया स्वतंत्रता दिवस, “हर घर तिरंगा 2025” बना जन-जन का अभियान

नई दिल्ली, 15 अगस्त 2025 —
देशभर में आज 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। यह अवसर केवल ऐतिहासिक महत्व का दिन नहीं रहा, बल्कि एक गहरी प्रेरणा का प्रतीक बनकर, देशवासियों को एकता, समर्पण और राष्ट्र-निर्माण की ओर अग्रसर करता रहा।

आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत प्रारंभ किया गया “हर घर तिरंगा” अभियान अब एक सशक्त जनआंदोलन का रूप ले चुका है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय ध्वज के साथ हमारे संबंध को औपचारिकता से आगे बढ़ाकर व्यक्तिगत और भावनात्मक जुड़ाव में बदलना है। इस वर्ष के संस्करण को चरणबद्ध तरीके से आयोजित किया गया, ताकि 15 अगस्त से पहले देश के प्रत्येक कोने से सहभागिता सुनिश्चित हो सके।

ग्रामीण इलाकों के मिट्टी के घरों से लेकर महानगरों की ऊँची इमारतों तक, कॉर्पोरेट कार्यालयों से लेकर स्कूल-कॉलेजों तक, और सैनिक शिविरों से लेकर स्वयं सहायता समूहों तक, सभी वर्गों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी की। ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म, रेलवे, नागरिक उड्डयन, सशस्त्र बल और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (capf) सहित कई संस्थानों का विशेष सहयोग रहा। स्वयं सहायता समूहों ने तिरंगे का बड़े पैमाने पर निर्माण कर सुनिश्चित किया कि यह गौरवपूर्ण प्रतीक हर घर में लहराए।

प्रधान आयोजकों के अनुसार, तिरंगा केवल तीन रंगों का कपड़ा नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता, बलिदान और साहस का जीवंत प्रतीक है। यह हमें हमारे गौरवशाली इतिहास और भविष्य की जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।

समापन दिवस पर घरों, संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगे का एक साथ, भव्य प्रदर्शन हुआ, जिसने राष्ट्रीय गौरव की अद्वितीय तस्वीर पेश की।
15 अगस्त केवल झंडा फहराने का दिन नहीं, बल्कि उन वीर शहीदों की स्मृति का दिन है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि आजादी केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, जिसे निभाते हुए हमें देश को निरंतर आगे बढ़ाना है।

इस अवसर पर देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी गईं और सभी से आह्वान किया गया कि वे देशभक्ति की भावना को और प्रगाढ़ करें तथा इस दिन को भव्य और यादगार बनाएं।

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05 Aug, 2025
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अखिल भारतीय कायस्थ महासभा दिल्ली प्रदेश की संगठनात्मक बैठक सम्पन्न, 31 अगस्त को द्वारका में होगी भव्य प्रदेश स्तरीय सभा

दिनांक 4 अगस्त 2025 को अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, दिल्ली प्रदेश द्वारा एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनूप श्रीवास्तव जी के दिल्ली स्थित आवास पर किया गया। इस बैठक का उद्देश्य संगठनात्मक मजबूती, प्रदेश स्तरीय कार्यप्रणाली और k-कार्ड अभियान को गति देना था।

बैठक में प्रमुख रूप से उपस्थित रहे

श्री मनोज श्रीवास्तव, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष

श्री एस.एस. प्रसाद, नव नियुक्त प्रदेश पदाधिकारी

श्री मुकेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ समाजसेवी

श्री मनीष राजवेदी कायस्थ, सक्रिय कार्यकर्ता

श्री राजीव वर्मा, महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष

श्री सुशील श्रीवास्तव, राष्ट्रीय कार्यकर्ता

बैठक में कायस्थ समाज को संगठित करने, युवाओं को जोड़ने, तथा हर परिवार तक k-कार्ड पहुँचाने की रणनीतियों पर विचार किया गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनूप श्रीवास्तव जी ने विस्तार से बताया कि k-कार्ड केवल एक पहचान पत्र नहीं, बल्कि समाज के एकजुटता, पारिवारिक डाटाबेस, योजनागत लाभ, और सशक्तिकरण का आधार बनेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले समय में k-कार्ड धारकों के लिए विशेष सामाजिक, शैक्षणिक एवं व्यवसायिक योजनाएं चलाई जाएंगी, जिससे कायस्थ समाज के हर वर्ग को लाभ मिलेगा।

बैठक के अंत में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि आगामी 31 अगस्त 2025 को दिल्ली प्रदेश की एक भव्य बैठक का आयोजन किया जाएगा, जो कि मॉडर्न स्कूल, द्वारका के ऑडिटोरियम में संपन्न होगी। इस सभा में दिल्ली-एनसीआर के सभी पदाधिकारी, कार्यकर्ता एवं समाजबंधु आमंत्रित किए जाएंगे।

यह आयोजन न केवल संगठन को मजबूती देगा बल्कि युवाओं में नई ऊर्जा का संचार करेगा। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए एक विशेष तैयारी समिति भी गठित की जाएगी।

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05 Aug, 2025
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कायस्थ सभा ग्रेटर फरीदाबाद की प्रथम वार्षिक आम सभा 10 अगस्त को — मुख्य अतिथि होंगे IRS डॉ. अनुप श्रीवास्तव

कायस्थ सभा ग्रेटर फरीदाबाद द्वारा प्रथम वार्षिक आम सभा का आयोजन दिनांक 10 अगस्त 2025, रविवार को किया जा रहा है। यह कार्यक्रम cafe smily, world street road (निकट चंडीला चौक) पर आयोजित होगा। सभा में समाज के विविध आयामों पर चर्चा के साथ-साथ संगठन की भावी योजनाओं की दिशा भी तय की जाएगी।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधार रहे हैं –
डॉ. अनुप कुमार श्रीवास्तव, irs (पूर्व प्रधान आयुक्त, भारत सरकार) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा।

डॉ. श्रीवास्तव समाज को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने की दिशा में अपने बहुमूल्य विचार साझा करेंगे। वे महासभा द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर संचालित गतिविधियों की जानकारी देने के साथ-साथ, समाज को डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ने के लिए डिजिटल पहचान व कैश कार्ड जैसी पहलों पर भी प्रकाश डालेंगे।

सभा के आयोजन की जानकारी देते हुए महासचिव श्री प्रभात श्रीवास्तव ने बताया कि “यह कार्यक्रम ग्रेटर फरीदाबाद के कायस्थ समाज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। क्षेत्र के सैकड़ों चित्रांश बंधु-बांधवों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।”

कार्यक्रम में सम्मिलित होने का समय:
दोपहर 12:00 बजे
स्थान: cafe smily, world street road, near chandilla chowk, greater faridabad

आयोजक: कायस्थ सभा ग्रेटर फरीदाबाद
विशेष अनुरोध: सभी चित्रांश बंधुओं से अनुरोध है कि समय पर पधारकर समाज के इस महत्वपूर्ण आयोजन को सफल बनाएं।

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29 Jul, 2025
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नागपंचमी पर कायस्थ समाज की विशेष श्रद्धा: भगवान चित्रगुप्त और नागवंश का पवित्र संबंध

नागपंचमी, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है, लेकिन कायस्थ समाज के लिए इसका महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वंशीय और सांस्कृतिक गर्व से भी जुड़ा हुआ है।

कायस्थों की परंपरा में मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त के 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 पुत्रियों से हुआ था। इसलिए कायस्थ समाज नागों को केवल पूजनीय ही नहीं मानता, बल्कि उन्हें अपना ननिहाल भी मानता है। इस कारण से नागपंचमी के दिन कायस्थ परिवार विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं, और मान्यता है कि इस दिन नागदेवता और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पर्व की परंपरा और महत्व:
इस दिन कायस्थ घरों में नागदेवता की प्रतिमा या चित्र की विधिवत पूजा किये जाने का विशेष महत्त्व है।
इस दिन भगवान चित्रगुप्त जी के साथ नागराज वासुकि और उनकी पुत्रियों को भी श्रद्धा से स्मरण किया जाता है। कई स्थानों पर कायस्थ समाज द्वारा सामूहिक पूजन, कथा-वाचन और आरती का आयोजन भी होता है।


"नागपंचमी पर कायस्थ जो करे श्रद्धा से पूजन,
वंश में बढ़े सुख, संपत्ति और कुल की रक्षा हो सदा।"

हर कायस्थ को चाहिए कि नागपंचमी पर अन्य कार्यों को स्थगित कर इस पूजा को पूरे श्रद्धा भाव से करें।
यह न केवल हमारी धार्मिक आस्था, बल्कि हमारे इतिहास और परंपरा से जुड़ने का दिन है।

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा का विशेष आग्रह:
"कायस्थ समाज के हर सदस्य से अपील है कि इस नागपंचमी पर अपने बच्चों को भी इस परंपरा का महत्व समझाएं, ताकि यह सांस्कृतिक विरासत अगली पीढ़ियों तक जीवित रहे।"

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23 Jul, 2025
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जयपुर में होगा भव्य स्वागत: कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनूप श्रीवास्तव 26 जुलाई को करेंगे जयपुर आगमन

जयपुर, 26 जुलाई – अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनूप श्रीवास्तव जी एवं वरिष्ठ राष्ट्रीय महासचिव व राजस्थान प्रभारी श्री कृष्ण कुमार श्रीवास्तव जी का गुलाबी नगरी जयपुर में श्री चित्रगुप्त ज्ञान मंदिर परिसर में भव्य स्वागत किया जाएगा।

यह स्वागत समारोह शनिवार, दिनांक 26 जुलाई को सायं 5 बजे आयोजित किया गया है। इस शुभ अवसर पर महासभा के प्रदेश अध्यक्ष युगल किशोर नेहवारिया ने समस्त कायस्थ बंधुओं से आग्रह किया है कि वे अधिक से अधिक संख्या में पधारें एवं अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों के स्वागत-सम्मान में सहभागी बनें।

इस आयोजन में प्रदेश भर के कायस्थ समुदाय के प्रमुख जन, सामाजिक कार्यकर्ता, गणमान्य नागरिक एवं समाजसेवी उपस्थित रहेंगे। यह समारोह समाज में एकता, संगठन और नेतृत्व को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।

स्थान: श्री चित्रगुप्त ज्ञान मंदिर परिसर, जयपुर
दिनांक एवं समय: शनिवार, 26 जुलाई, सायं 05:00 बजे

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19 Jul, 2025
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कायस्थ समाज के महान गीतकार व कवि गोपाल दास 'नीरज' जी की पुण्यथिति पर उन्हें शत शत नमन...

महान गीतकार व कवि गोपाल दास 'नीरज' जी की पुण्यथिति पर उन्हें शत शत नमन...

वेद आशीष श्रीवास्तव - 19/07/2025

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा वेब पोर्टल पर आज हम बात करेंगे कायस्थ समाज के एक ऐसे गीतकार के बारे में जिसने 95 साल हिन्दुस्थान पर राज किया और हमारे समाज को गौरवान्वित किया l जो मुशायरों और कवि सम्मेलनों के मंच पर यहां उर्दू के बड़े-बड़े सितारे अपना कलाम पड़ते, वही हिंदी के गीतों से मंच लूट लेने वाला यह गीतकार जिसके पहले ही गीत ने इतिहास रच दिया...

जी हाँ हम बात कर रहे है ऐसे महान कवि की जिसका जन्म 4 जनवरी सन 1925 को उत्तर प्रदेश जिला इटावा, ब्लाक महेवा के निकट पुरावली गाँव के कायस्थ परिवार में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के घर हुआ। घरवालों ने नाम रखा गोपालदास जिन्हे दुनिया आज राष्ट्र कवि नीरज के नाम से जानती है l

इससे पहले यह अपनी जीवन यात्रा शुरू करते मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। इन्हें बचपन में कुछ ऐसे अनुभव मिले जिन्होंने बहुत कुछ सिखाया l परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी इसलिए यह यमुना नदी में अक्सर गोते लगाते ताकि ये सिक्के बटोर सके जो श्रद्धालु नदी में फेंकते थे l इस के  बाद भी नीरज जी ने एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० उत्तीर्ण कर बता दिया कि 

लाख करे पतझर कोशिश पर,
उपवन नहीं मरा करता है।
नफरत गले लगाने वालो.
सब पर धूल उड़ाने वालो!
कुछ मुखड़ों की नाराजी से.
दर्पण नहीं मरा करता है।

नीरज जी ने बचपन से ही काव्य की तरफ रुख कर लिया था l समय का पहिया घूम रहा था घरवालों ने इनकी शादी सावित्री देवी सक्सेना से करा दी l तब इनके रिश्तेदारों ने इन्हें माली रूप से सहायता देना बंद कर दिया और यह कह दिया अब अपने बलबूते पर जो करना चाहो करो l रोजी-रोटी चलने के लिए नीरज जी ने कचहरी में कुछ समय और बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया l उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। यहाँ तक कि नीरज जी ने बीड़ी और सिगरेट भी बेचीं l बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाई, रिक्शा चलाया और दीवारों पर फिल्म के इश्तेहार भी लिखे l 

दीवारों पर इश्तेहार लिखते वक्त उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन गीतकार के रूप में नीरज साहब का नाम भी इन्ही इश्तेहारों में लिखा जाएगा l 

अब यहाँ हम थोड़ा सा पीछे आकर एक ऐसी दास्तान का जिग्र करेंगे जिसने गोपालदास सक्सेना को गोपालदास नीरज बना दिया l किस्सा कुछ यूँ है कि नीरज जी एक लड़की से प्यार करते थे और वो लड़की एक संपन्न परिवार से थी l इसलिए उससे शादी नहीं कर पाए l तब उस 23 साल के नीरज ने एक गीत लिखा जो 23 हज़ार सालों तक गाया जायेगा वो गीत है- 

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

जिससे मोहब्बत थी अब उसकी डोली उठने वाली थी नीरज जी सामने के मकान से अपने दोस्त की छत से सुबह के 6:00 बजे विदाई देखत हुए नीरज जी ने लिखा 

ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

नीरज जी ने अपने टूटे दिल की दास्तान को कविता और गीतों में वयां किया l इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया और वहां सरकारी पब्लिसिटी डिवीजन में बतौर टाइपिस्ट काम करने लगे l पर नीरज साहब का मन सरकारी नौकरी में लग नहीं रहा था l तो नीरज साहब दिल्ली से मेरठ चले आये और मेरठ  कॉलेज में हिंदी के अध्यापक बन गए l लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि एक दिन कॉलेज प्रशासन ने नीरज जी को बुलाकर खरी-खोटी सुना दी, यह कह दिया आप तो क्लास में पढ़ाते नहीं है आपके तो बस इश्क के चर्चे होते है l यह बात नीरज साहब को बड़ी बुरी लगी और उन्हें बहुत गुस्सा आया उन्होंने  उसी वक्त अपना इस्तीफा कॉलेज प्रशासन को दे दिया और वहां से चले आये और इसके बाद उन्होंने रुख किया अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज की तरफ यहां पर यह हिंदी विभाग के प्रोफेसर चुन लिए गए l अब नीरज साहब ने ठान लिया था कि अलीगढ़ शहर को ही अपना ठिकाना बनाना है l 
पर समय ने करबट बदली कवि सम्मेलनों में नीरज जी की लोकप्रियता परमान चढ़ने लगी l तभी फिल्म प्रड्यूसर आर चंद्रा जो एक फिल्म को बतौर डारेक्टर बनाना चाहते थे l यह फिल्म नीरज जी की कविता ''कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे'' से प्रेरित थी फिल्म का नाम था ''नई उम्र की पहली फसल''

हालांकि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास काम नहीं किया पर इसी बीच नीरज साहब पर नजर पड़ी एवरग्रीन सुपरस्टार देवानंद साहब की और देवानंद साहब ने नीरज जी को मुंबई आने को कहा l नीरज जी ने अपने कॉलेज से 6 दिन की छुट्टी ली और मुंबई पहुंच गए l  देवानंद साहब से यह इनकी पहली मुलाकात थी l  देवानंद साहब ने अभी इन्हें साइन भी नहीं किया था पर हजार रुपए इनके हाथ में थमा दिए और इन्हें शांत क्रूज़ के पास की एक आलीशान होटल में ठहराया ( यह उस वक्त की बात है जब देवानंद साहब अपनी फिल्म प्रेम पुजारी के लिए एक खास सिचुएशन के लिए गाना खोज रहे थे) अगले दिन सुबह देव साहब इन्हें लेने खुद होटल पहुंच गए और इन्हें लेकर मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन के पास गए देव साहब ने बर्मन जी से कहा दादा यह नीरज है इन्हें गीत लिखने बुलाया है l बर्मन साहब ने देखा एक दुबला पतला जवान लड़का उनके सामने खड़ा हैl वर्मन साहब ने कहा कौन ?नीरज!  बेटा तुम गाना लिखोगे..... उन्होंने एक चुनौती दी कहा जाओ एक गाना लिखकर लाओ एक गांव की लड़की विदेश गई है वहां उसने शराब पी ली हैl ना अब शराब लिखना है, ना नशा लिखना है, ना मदहोश लिखना है, ना बेहोश लिखना है, इस पर गाना लिखकर लाओ नीरज जी ने एक ही रात में गाना लिख डाला सुबह आकर एस डी वर्मन साहब को दे दिया वो गाना था - रंगीला रे तेरे रंग में रंग में रंग गाया है मेरा मन .. देव साहब गाना सुनकर बड़े खुश हुए और एच डी बर्मन साहब ने कहा मैंने जानबूझकर तुम्हें इतनी कठिन सिचुएशन दी थी पर तुम पास हो गए l फिर क्या था नीरज साहब ने फिल्म प्रेम पुजारी  के लिए शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब..... और फूलों के रंग से.... गीत लिखे जिन्हें कोई भुला नहीं सकता l नीरज साहब के गीत मशहूर हो गए थे नीरज साहब की नज़दीकियां मशहूर संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन से बड़ी हालांकि शंकर जयकिशन में शंकर साहब से इनकी काफी बहस हुआ करती थी लेकिन वहसा-वहसी में काम बड़ा अच्छा हो जाता था l एक दिन नीरज साहब 3 पन्नों की कविता लेकर शंकर जयकिशन साहब के पास पहुंच गए और उस कविता ने कटते- छटते गाने की शक्ल ली और वह गाना था- लिखे जो खत तुझे जो तेरी याद में..... जो फिल्म कन्यादान में इस्तेमाल किया गया

यह वो दौर था जब साहिर लुधियानवी, हसरत जयपुरी जैसे फनकार उर्दू के एक से एक गीत लिख रहे थे वही हिंदी के गीतकार शैलेंद्र के निधन के बाद देवानंद साहब चाह रहे थे कि कोई ऐसा आए जो सरल हिंदी में बड़े अच्छे गाने लिख सके l सबको इस उम्मीद की किरण नीरज साहब के काव्य में दिखी l जिस दौर में कुछ गाने आमीरी पर बनते थे, तो कुछ गरीबी पर, कुछ इश्क पर, तो कुछ बेवफाई पर, ऐसे माहौल में  राजकुमार साहब अपनी फिल्म मेरा नाम जोकर में एक ऐसा गाना रखना चाहते थे जो हर आम इंसान से जुड़ा हुआ हो राजकुमार साहब ने नीरज जी से इस गाने को लिखने को कहा राज साहब से गाने की सिचुएशन सुनकर नीरज जी जब थियटर से निकल रहे थे तब उनका पैर लाइट से टकरा गाया और वो लड़खड़ा गए और उन्हें वो बात याद आ गयी जब वो रिक्शा चलते वक्त किसी से टकरा गए थे नीरज जी लौटे और वह दो लाइन जो उनको लड़खड़ाते हुए याद आई थी वो शंकर जयकिशन जी को सुनाई शंकर जयकिशन जी को लगा यह गाना फोम लेस होगा l यह तो सीधे-सीधे बात है इस पर धुन बनाना मुश्किल होगा तब खुद नीरज जी ने एक धुन सुनाई और गाना गाकर बताया यह धुन सुनकर शंकर जयकिशन जी को भरोसा हो गया कि इस गाने की धुन बन सकती है l गाना कंपोज किया और हिन्दुस्थान को एक ऐसा मुहावरा दे दिया जो हर आम आदमी का गीत बन गया आज भी लोग इस गाने को सड़क पर चलते हुए गुनगुनाते हैं-  ऐ भाई जरा देख के चलो आगे भी नहीं पीछे भी ऊपर भी नहीं नीचे भी.....दाएं भी नहीं बाएं भी ....

नीरज जी ने 70 के दौर में एक से एक गाने दिए यह वो दौर था जब मुंबई जान गई थी कि, उर्दू अगर साहिल लुधियानवी दे सकती है, तो हिंदी ने भी गोपाल दास नीरज दिया है l अभी नीरज जी को फिल्म नगरी में 5 साल ही हुए थे और यहाँ नए ज़माने के ऊलजलूल गाने बनने लगे फिर क्या था नीरज जी का फ़िल्मी दुनिया से भी जी उचट गया और वे मुंबई को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये और फिर से शिक्षक का रूप धारण कर लिया l मुझे लगता है शायद तब ही नीरज जी ने लिखा होगा -

“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”

हालांकि नीरज जी की रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रमुख्यता से छपती रही और कवि सम्मेलनों में इनका एक अलग ही मुकाम बना गया l मध्यप्रदेश के शहर इंदौर में प्रति वर्ष होने वाले अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मलेन में लगातार 55 वर्षों तक नीरज जी काव्य पाठ किया l 

नीरज जी ऐसे पहले शख्स रहे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया l सन 1991 में पद्मश्री और सन 2007 में पद्म भूषण से, सन 1994 में उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान ने यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया l नीरज जी को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था l यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार भी मिला।

अगर अपने नीरज जी को कवि सम्मेलनों में सुना होगा तो वो अक्सर कहते थे कि मुझे यमदूत लेने आया था मैंने उसे एक गीत सुना दिया और वो चला गया l कवि यमदूत से कह रहा है क्या -


ऐसी क्या बात है चलता हूँ अभी चलता हूँ, 
गीत एक और जरा झूम के गा लूँ तो चलूँ 
ये कुआँ ताल, ये पनघट ये त्रिवेणी संगम, 
ये भुवन भूमि अयोध्या, ये विकल वृंदावन,
क्या पता स्वर्ग में फिर इनका दरस हो के न हो, 
धुल धरती की जरा माथे लगा लूँ तो चलूँ 


पर 19 जुलाई  2018 को पता नहीं कैसा दूत आया जो उनका गीत समझ नहीं सका और उस दिन नीरज जी इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए l  सदियों तक अमर कवि गोपाल दास नीरज की कविताएं उन्हें जीवित रखेंगीl गोपाल दास नीरज एक नाम जो भारतीय साहित्य और फ़िल्मी गीतों के इतिहास में सदा अमर रहेगा l

वेद आशीष श्रीवास्तव 
राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष 
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा  

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की ओर से सादर श्रद्धांजलि....

आप अपने श्रद्धा सुमन कमेंट बॉक्स में प्रेषित कर सकते है  l

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17 Jul, 2025
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गुजरात की पवित्र भूमि पर बन रहा भगवान् श्री चित्रगुप्त का महापीठ

कायस्थ समाज के लिए गौरव और आत्मगौरव का क्षण तब साकार रूप लेता है जब आस्था, संस्कृति और सामाजिक एकता किसी महान निर्माण में मूर्त होती है। गुजरात की पुण्यभूमि पर शीघ्र ही एक ऐसा महापीठ आकार लेने जा रहा है, जो न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र बनेगा, बल्कि कायस्थ समाज की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का भी प्रतीक होगा।

यह केवल ईंट और पत्थरों से बना कोई साधारण मंदिर नहीं होगा, बल्कि एक ऐसा सांस्कृतिक स्मारक होगा, जहाँ सपरिवार विराजेंगे हमारे आराध्य देव – भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज, माता दक्षिणा और माता नंदिनी के साथ, उनके 12 पुत्रों सहित भव्य सिंहासन पर 15 फुट ऊँची प्रतिमा के रूप में। इस मंदिर में माँ दुर्गा, भगवान श्रीराम दरबार और 40 फुट ऊँची श्री हनुमान जी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित की जाएगी, जो इस पावन स्थान को सम्पूर्ण श्रद्धा और शक्ति का तीर्थ बना देगी।

इतिहास को आत्मा में बसा देने वाला क्षण
"जिस मिट्टी ने हमें स्वाभिमान दिया,
अब वक़्त है उसे सम्मान दिया।
जो लिखा गया था इतिहास में स्वर्ण से,
वही कुल आज फिर से मुकुट पहन रहा है!"

यह महायोजना न केवल भव्यता की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि भावनात्मक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी है।

इस ऐतिहासिक निर्माण की अगुवाई कर रहे हैं अखिल भारतीय कायस्थ महासभा गुजरात के अध्यक्ष मधु श्रीवास्तव जी, जिन्होंने समाज की धार्मिक चेतना को साकार करने के लिए इस महासंकल्प को अपनाया है।

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने लिया संकल्प
इस भूमि पूजन और प्रारंभिक दर्शन हेतु जब राष्ट्रीय महासचिव श्री कृष्ण कुमार श्रीवास्तव जी, महिला शक्ति की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रीता श्रीवास्तव जी, राष्ट्रीय सचिव श्री विजय सक्सेना जी समेत अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रमुख प्रतिनिधि गुजरात पहुँचे, तो मधु श्रीवास्तव जी ने आत्मीयता से उन्हें आगामी योजनाओं की जानकारी दी और पूर्ण आस्था के साथ आश्वासन दिया कि यह निर्माण शीघ्र ही सम्पन्न होगा। इस पर महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय महासचिव कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने सामूहिक संकल्प लिया की महासभा पूरी विश्व में इसका प्रचार करेगी l

इस अवसर पर समाज के वरिष्ठजनों में अरविंद श्रीवास्तव, संतोष श्रीवास्तव, अंकुर श्रीवास्तव ने भी अपनी उपस्थिति से वातावरण को उत्साहपूर्ण बनाया। वहीं महिला शक्ति समूह से पूनम भटनागर, आरती श्रीवास्तव, मंजू सक्सेना एवं सुधा श्रीवास्तव ने अपने भावों को शब्दों में ढालते हुए, इस ऐतिहासिक प्रयास के लिए मधु भैया का आभार प्रकट किया।

मंदिर निर्माण की यह योजना केवल ईश्वर की स्थापना नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक चेतना, गौरव और स्वाभिमान का स्तंभ बनने जा रही है। कायस्थ समाज ने भारत के हर युग में अपनी लेखनी, बुद्धि, न्यायप्रियता और बलिदान से राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है।

"कभी लेखनी से लड़े, कभी बंदूक उठाई,
कभी न्याय दिया, कभी शिक्षा की जोत जगाई।
चित्रांश हैं हम, पहचान यही है,
कर्म, श्रद्धा और सम्मान यही है।"

यह वह क्षण है जब समस्त कायस्थ समाज को एकजुट होकर इस महान कार्य में योगदान देना चाहिए। यह हमारा नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियों का स्वाभिमान बनने जा रहा है।
आइए, हम इस युगानुकूल प्रयास में सहभागी बनें, और उस दिन की प्रतीक्षा करें,
जब गुजरात की पावन धरा पर भगवान चित्रगुप्त सपरिवार विराजमान होकर हमें आत्मसम्मान की नई परिभाषा देंगे।

जय चित्रगुप्त! जय कायस्थ समाज!

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